शौचालय जरूरी है।
देवालयों से पहले शौचालय जरूरी है। चीन में एक शहर है लिनफेन। यहाँ शौचालय जैसे मूलभूत जनसुविधाओं की बहुत भारी कमी थी। बड़े प्राजेक्टो की योजनाएं तो बनती थी परन्तु सार्वजनिक शौचालय बनवाने की तरफ किसी का ध्यान नही जाता था। काफी वर्षों तक लिनफेन दुनिया की सबसे गंदी जगहों में एक थी जहाँ रहना किसी नरक से कम नहीं था। 2008 में वहां के लोगो ने ‘‘शौचालय क्रांति’’ की शुरूआत की। पूरे विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ और लिनफेन की व्यवस्था में सुधार आना शुरू हो गया।इस शहर में जादुई परिवर्तन आया। एक समय में 6,00,000 आबादी के लिए केवल 12 शौचालय थे। नारकीय स्थिति से उभरने के लिए स्थानीय सरकार ने इस शहर के आसपास और जिन जगहों पर बहुत जरूरत थी, 200 नए शौचालय बनाए गए और जिन शौचालयों की स्थिति शौचनीय थी, उनका नए ढंग से पुर्ननिर्माण किया गया। शौचालयों में पूरी सुविधाओं के साथ सुन्दर सज़ावटी होने के कारण लोगो का दृष्टिकोण भी बदला। वे भी अब साफ सुथरा रहना चाहते थे। आज वहां प्रति वर्ष 20 करोड़ लोग शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं। लिनफेन और भारत के कुछ शहरों का मुकाबला किया जाए तो हम पाएंगे कि स्थिति बहुत ही गंभीर व शौचनीय है। अच्छे सुन्दर शौचालय के मामले में हम बहुत ही पिछड़े हुए हैं और कभी भी किसी सरकारी अधिकारी व नेता ने इस ओर ध्यान नहीं दिया । देश की बड़ी योजनाओं पर करोड़ो रूपये खर्च किए जाते है, जो जरूरी भी है, परन्तु शौचालय जैसे मूलभूत सार्वजनिक सुविधाओं की ओर कभी किसी सरकार या चुने हुए जन प्रतिनिधियांे का ध्यान नहीं जाता। चैन्नई जहां 6000 जन सुविधाएं चाहिए वहां केवल 714 और नागपुर जहां 3000 शौचालय चाहिए, वहां केवल 318 है। ऐसी स्थिति लगभग सभी शहरों में है। वर्तमान में जो शौचालय हैं भी उनका रखरखाव इतना खराब है कि चाह कर भी, प्रयोग करने की हिम्मत नहीं पड़ती। इस लगातार उपेक्षा के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं बढ़ी है।करोड़ो शहरी निवासियों को शौचालय की सुविधा देना एक बड़ी चुनौती और प्राथमिकता है। नगरों में ऐसी सुविधाओं को देना भी अपेक्षित है और उन सभी लोगों के लिए जो इन सुविधाओं का प्रयोग करते है।‘सुलभ इंटरनेशनल’ जैसी संस्थाओं ने इस क्षेत्र में काफी सराहनीय, कम कीमत व आसानी से रखरखाव के क्षेत्र में अच्छा काम किया है पर वे केवल वहां बनाए हैं जहां इनकी कमी है और घरेलू शौचालयों के लिए कुछ काम किया है। जरूरत है सार्वजनिक शौचालयों की संख्या बढ़ाना और उनके रखरखाव को सुधारना। यह मूलभूत सुविधाओं का ही एक हिस्सा है जिसकी जरूरत किसी भी सभ्य देश, शहर, मुहल्ले में हैं और इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । आज के शौचालयों को इस तरह से सुन्दर व सुविधाजनक बनाया जाए। जिसे प्रयोग करने वाले गौरव महसूस करें, न कि इन शौचालयों में जाने से नफरत आए। दिल्ली की कुछ पुर्ननिवास कालोनियों में जाने का अवसर मिला; देखा कि बहुत ही कम लोगो के घरों में शौचालय हैं और सार्वजनिक शौचालयों पर प्रातः लोगो को घंटो लाइन में खड़ा होना पड़ता है । आप अनुमान लगा सकते हैं कि लोगो को कैसी मनःस्थिति से गुजरना पड़ता है।इन शौचालयों को इस तरह से बनाया जाए कि आसानी से इनकी फिटिंग की चोरी न हो सके, उनकी पूरी तरह से सुरक्षा की जानी चाहिए। इनका सौदंर्यकरण सुन्दर रंगो से किया जाना चाहिए और चाहिए उचित स्थान, अच्छा रखरखाव और संसधानों को पुनःप्रयोग ;त्मबलबसमद्ध करने की सुविधा हो। कोई भी स्थान, शहर वहां के सुन्दर शौचालयों के कारण अच्छी तरह जाना जाता है। ऐसे स्थानों पर महिलाओं के लिए बहुत सारे शौचालयों की जरूरत और विक्लांगो की जरूरत को भी समाहित किया जाना चाहिए। कानूनी तौर पर निर्देश होना चाहिए कि सभी स्थानीय सरकारी विभागों की इमारतो में, जो सड़क के किनारें हैं, जन सुविधाओं के लिए स्थान निर्धारित किया जाना चाहिए। इंग्लैंड में प्राईवेट संस्थानों को धन दिया जाता है ताकि लोगो की सुविधा के लिए शौचालयों को चलाए। किसी भी शहर का स्वास्थय का सीधा सम्बन्ध अच्छे सुविधापूर्वक शौचालयों से है और यह महत्वपूर्ण है। बड़ी संख्या में शौचालय बनाने की जरूरत है।जब कभी आर. डब्ल्यू. ए. ;त्ॅ।द्ध या फैडरेशन अपने जन प्रतिनिधि -निगम पार्षद, विधायक आदि का ध्यान इस ओर दिलाते हैं तो ये कहकर टाल दिया जाता है कि कहां बनाएं, और जब बन जाएंगे तो उसका रखरखाव न होने पर लोग ही उन्हें हटाने के लिए कहेंगे। समझ नही आता कि शौचालयों का रखरखाव क्यों नहीं हो सकता? पिछले वर्ष मुझे ताईवान और जापान जाने का अवसर प्राप्त हुआ । हम लोग वहां टोरोको नेशनल पार्क, जो 10,000 फुट की ऊँचाई पर था, देखने गए। आप अनुमान नहीं लगा सकते कि इतनी ऊँचाई पर सार्वजनिक शौचालयों का कैसे रखरखाव हो रहा है। 24 घंटे पानी है, टाॅयलेट पेपर उपलब्ध है और बदबू का नाम निशान नहीं। वहां की सरकार कैसे यह सब कर पाती है। यह प्रश्न है प्रबन्धन का। हमारें यहां सार्वजनिक शौचालयों का प्रबन्धन क्यों नहीं सकता? माना जनसंख्या बेशुमार है पर साधनों की कमी तो नहीं है, जरूरत है केवल इच्छा शक्ति की।हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने एक भाषण में कहा था ‘देवालयों से पहले शौचालयों का निर्माण किया जाना चाहिए, जो सभी के लिए बहुत जरूरी है। अब आशा की जानी चाहिए कि इस दिशा में कोई कदम उठाए जाएंगे। यह राष्ट्रीय प्राथमिकता है और यहां भी ‘‘शौचालय क्रांति’’ लाने की जरूरत है। प्रस्तुति: लाजपत राय सभरवाल
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